Life Shayari | Zindagi Shayari -
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था.”
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महफ़िल में गले मिलकर वह धीरे से कह गए,
यह दुनिया की रस्म है, इसे मुहोब्बत मत समझ लेना.”
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सहर न आई कई बार नींद से जागे
थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले.
←💘→फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले ✋हाथ बढा़ कर देखो
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है 💗दिल होते हैं
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो
←💘→वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
←💘→ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का
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साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता।
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारो।।
कुछ न कुछ सच्चाई होती है निहाँ हर बात में
कहने वाले ठीक कहते हैं सभी अपनी जगह
कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
इख़्तियार अपनी जगह है बेबसी अपनी जगह
इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह
ये माना ज़िन्दगी है चार 🌞दिन की
बहुत होते हैं यारो चार 🌞दिन भी
कुछ इस तरह से गुजरी है जिंदगी जैसी है
तमाम उमर किसी दूसरे के घर में रहा
जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
आए ठहरे और रवाना हो गए
ज़िंदगी क्या है, सफ़र की बात है
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं
ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से
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महफ़िल में चल रही थी 🧝🏼♂️मेरे कत्ल की तैयारी,
हमे देख कर बोले बहुत लम्बी उम्र है 🙅🏼तुम्हारी।
बेजान चीज़ो को बदनाम करने के
तरीके कितने आसान होते है….!
लोग सुनते है छुप छुप के बाते ,
और कहते है के दीवारो को भी कान होते हैं!
रिश्तो के बाजार में रिश्तो को कुछ इस तरह सजाया जाता है,
ऊपर से तो बहुत अच्छा दिखाया जाता है,
पर अंदर न जाने क्या क्या मिलाया जाता है।
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किस से सीखू मैं खुदा की बंदगी,
सब लोग खुदा के बँटवारे किए बैठे है,
जो लोग कहते है खुदा कण कण में है,
वही मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारे लिए बैठे हैं !
सच्चे किस्से शराबखाने में सुने,
वो भी ✋हाथ मे जाम लेकर,
झूठे किस्से अदालत में सुने,
वो भी ✋हाथ मे गीता-कुरान लेकर।
एक उम्र गुस्ताखियों के लिये भी नसीब हो,
ये ज़िंदगी तो बस अदब में ही गुजर गई।
खुशी में भी आँखें आँसू बहाती रही,
जरा सी बात देर तक रुलाती रही,
कोई खो के मिल गया तो कोई मिल के खो गया,
ज़िंदगी हम को बस ऐसे ही आज़माती रही।
साथ तो जिंदगी भी छोड़ देती है
फिर शिकायत सिर्फ लोगों से क्यों
जो किस्मत में नही था
जिंदगी उसी से टकरा गई..!
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अब तो अपनी तबियत भी जुदा लगती है,
सांस लेता हूँ तो ज़ख्मों को हवा लगती है,
कभी राजी तो कभी मुझसे खफा लगती है,
जिंदगी तू ही बता तू मेरी क्या लगती है।
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हँसकर जीना दस्तूर है ज़िंदगी का,
एक यही किस्सा मशहूर है ज़िंदगी का,
बीते हुए पल कभी लौट कर नहीं आते,
यही सबसे बड़ा कसूर है ज़िंदगी का।







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